नर्मदा परिक्रमा क्यों की जाती है और नर्मदा परिक्रमा का महत्व | Narmada Parikrama ka Mahatva

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नर्मदा परिक्रमा क्यों की जाती है और नर्मदा परिक्रमा का महत्व | Narmada Parikrama ka Mahatva

आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि लोग आखिर क्यों नर्मदा परिक्रमा करते हैं? और नर्मदा परिक्रमा करने के बाद लोगों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है! मां नर्मदा की परिक्रमा का क्या महत्व है और नर्मदा की परिक्रमा क्यों की जाती है।

नर्मदा परिक्रमा क्यों की जाती है और नर्मदा परिक्रमा का महत्व | Narmada Parikrama ka Mahatva
नर्मदा परिक्रमा का महत्व  Narmada Parikrama ka Mahatva

नर्मदा जी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और तेरह दिनों में पूर्ण होती है। अनेक देवगणों ने नर्मदा तत्व का अवगाहन ध्यान किया है। ऐसी एक मान्यता है कि द्रोणपुत्र अभी भी माँ नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। इन्हीं नर्मदा के किनारे न जाने कितने दिव्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग, उपलिग आदि स्थापित हैं। जिनकी महत्ता चहुँ ओर फैली है। परिक्रमा वासी लगभ्ग तेरह सौ बारह किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। श्री नर्मदा जी की जहाँ से परिक्रमावासी परिक्रमा का संकल्प लेते हैं वहाँ के योग्य व्यक्ति से अपनी स्पष्ट विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र लेते हैं। परिक्रमा प्रारंभ् श्री नर्मदा पूजन व कढाई चढाने के बाद प्रारंभ् होती है।

क्यों करते हैं नर्मदा परिक्रमा | Narmada Parikrama kyon karte hain

नर्मदा जी भारतीय संस्कृति के अनुसार एक पवित्र नदी है। नर्मदा को शास्त्रों में नर्मदा देवी की संज्ञा दी गई है। नर्मदा नदी की परिक्रमा एक धार्मिक यात्रा है, जो पैदल ही करनी होती है। ऐसा बताया जाता है कि जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक नदी की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। इसलिए शास्त्रों के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का ही बहुत ही अधिक महत्व है।

 1) हमारे पास 18 पुराण हैं और केवल नर्मदा पुराण नदी के रूप में कोई अन्य नदी पुराण नहीं है।

 2) नर्मदा का अर्थ है मुस्कान और दे का अर्थ है देने वाली, वह हमेशा मुस्कान देती हैं।

 3) नर्मदा शिव की बेटी हैं और शिव उनके जन्म पर बहुत खुश थे।

 4) भारत की सभी नदियाँ अपने उद्गम से दक्षिण की ओर बहती हैं, केवल नर्मदा पश्चिम की ओर जाकर समुद्र में मिलती हैं।

 5) किसी अन्य नदी में स्नान करने से मोक्ष होता है, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से भी मोक्ष हो जाता है।

 6) विभिन्न प्रकार के बाण (पूजा में प्रयुक्त) भारत में नर्मदा के कुछ भागों में ही पाए जाते हैं।

 7) नर्मदा ने अब तक कितनी ही बाढ़ें अपने किनारों से बहाई हों, उसने कभी नुकसान नहीं पहुँचाया, अब पावेटो की सीमा में है।

 8) यह वरदान है कि प्रचंड बाढ़ के बाद भी नर्मदा गायब नहीं होगी।

 9) नर्मदा नामक बर्तन से लाल रंग के गोटा को भगवान गणपति के रूप में पूजा जाता है।

 10) पुराणों के अनुसार नर्मदा नदी में एक बड़े पत्थर से शिवलिंग बना है और इस शिवलिंग की खास बात यह है कि इसकी पूजा नहीं करनी पड़ती है।

 11) नर्मदा की परिक्रमा करते समय इसके तट पर आटा, काटा (जलने वाली लकड़ी) और भाटा (पत्थर) की कोई कमी नहीं होती है, इसलिए परिक्रमा के दौरान कोई भी भूखा नहीं रहता है।

12) नर्मदा जयंती (रथ सप्तमी) पर सभी महान नदियाँ उसमें स्नान करती हैं और लोगों के स्नान से संचित सभी पापों को धो देती हैं।

 13) भारत में अधिकांश योगियों, सन्यासियों ने नर्मदा में अपने शरीर को समर्पित कर जल समाधि ले ली है।

 14) भारत में अधिकांश संत महंतों के आश्रम नर्मदा के तट पर स्थित हैं और सेवा प्राधिकरण/ट्रस्ट हजारों वर्षों से बिना किसी अपेक्षा के पैदल परिक्रमा कर रहे भक्तों की देखभाल कर रहे हैं।

 15) परिक्रमा में आज भी नर्मदा में स्नान करने और स्वयं का जल पीने से पेट और चर्म रोग पूरी तरह से गायब होने के उदाहरण मिलते हैं।

 16) मेरी 3500 कुंजियों की यह परिक्रमा आज भी हजारों भक्त करते हैं, मैय्या एक मां से ज्यादा उनका ख्याल रखती हैं, बस जरूरत है परिक्रमा के हमारे दृढ़ संकल्प की।

17) सच्चे मन से मां नर्मदा की परिक्रमा करने से मां नर्मदा अपने भक्तों के सभी दुखों को हर लेती है।

18) एक बार नर्मदा परिक्रमा पूर्ण करने के बाद इंसान का जीवन हर्ष और उल्लास से भर जाता है।

नर्मदा परिक्रमा का महत्व | Narmada Parikrama ka Mahatva

नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। ऐसा बताया गया है कि गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्र तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है और श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। और जल का प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है।

नर्मदा का उद्गम म0प्र0 के अनूपपुर जिले (पुराने शहडोल जिले का दक्षिण-पश्चिमी भाग) में स्थित अमरकण्टक के पठार पर लगभग 22*40श् छ अक्षांश तथा 81*46श् म् देशान्तर पर एक कुण्ड में है । यह स्थान सतपुडा तथा विंध्य पर्वतमालाओं को मिलने वाली उत्तर से दक्षिण की ओर फैली मैकल पर्वत श्रेणी में समुद्र तल से 1051 मी0 ऊंचाई पर स्थित है । अपने उद्गम स्थल से उत्तर-पश्चिम दिशा में लगभग 8 कि0मी0 की दूरी पर नर्मदा 25 मी0 ऊंचाई से अचानक नीचे कूद पडती है जिससे ऐश्वर्यशाली कपिलधारा प्रपात का निर्माण होता है । इसके बाद लगभग 75 कि0मी0 तक नर्मदा पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा में ही बहती है । अपनी इस यात्रा में आसपास के अनेक छोटे नदी-नालों से पानी बटोरते-सहेजते नर्मदा सशक्त होती चलती है ।

नर्मदे हर...... नर्मदे हर....... नर्मदे हर.....

नोट: ऊपर बताई गई जानकारी को हिंदू कैलेंडर, हिंदू ग्रंथों, हिंदू वेद, पुराणों आदि से लिया गया है इस में त्रुटि होने पर हमारी वेबसाइट की कोई भी जिम्मेदारी नहीं बनती।

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