भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य - जगन्नाथ पुरी की कथा - आखिर प्रसिद्ध जगन्नाथ की मूर्ति क्यों रह गयी अधूरी | Jagannath Puri ka Rahasya

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आखिर प्रसिद्ध जगन्नाथ की मूर्ति क्यों रह गयी अधूरी | Jagannath Puri ka Rahasya

आज हम इस पोस्ट में जानेंगे भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का क्या रहस्य है और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति जगन्नाथ पुरी में अधूरी क्योंकि रह गई! आखिर इस मूर्ति को बनाते बनाते अधूरा क्यों छोड़ दिया गया! इसके बारे में हम जगन्नाथ की पूरी कथा जानेंगे और इस के रहस्यों के बारे में भी जानेंगे।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य - जगन्नाथ पुरी की कथा - आखिर प्रसिद्ध जगन्नाथ की मूर्ति क्यों रह गयी अधूरी | Jagannath Puri ka Rahasya
जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य

जगन्नाथ की पुरी भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उड़िसा प्रांत के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ का मंदिर श्री कृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है। इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका भेद इंजिनयरिंग के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी नहीं कर पायें हैं। आज हम आपको बताने जा रहे है की आखिर इस मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों अधूरी है तथा इसके पीछे का क्या रहस्य है?

मूर्तियां क्यों अधूरी हैं - Jagannath Puri ka Rahasya

कहा जाता है कि भगवान जगत के स्वामी जगन्नाथ भगवान श्री विष्णु की इंद्रनील या कहें नीलमणि से बनी मूर्ति एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। मूर्ति की भव्यता को देखकर धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपा दिया। मान्यता है कि मालवा नरेश इंद्रद्युम्न जो कि भगवान विष्णु के कड़े भक्त थे उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिये और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा उस से मूर्ति का निर्माण कराओ। राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया।

अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किनसे बनवाये। कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए। उन्होंनें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें लेकिन उस कारीगर रूप में आये बूढे ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह यह कार्य बंद कमरे में एक रात में ही करेगा और यदि कमरा खुला तो वह काम बीच में ही छोड़कर चला जाएगा। राजा ने उस ब्राह्मण की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया। लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरुर आता था। महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, तो राजा को जिज्ञासा हुई और उनसे रहा न गया और अंदर झांककर देखने लगे और दरवाजा खुलते ही वह ब्राह्मण उस अधूरी मूर्तियों को छोड़ कर गायब हो गया। 

वास्तव में वह बूढा ब्राह्मण विश्वकर्माजी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर यह जगन्नाथ मंदिर में कृष्णा, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनाने धरती पर आये थे। राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यही दैव की मर्जी है। तब उसी अवस्था में मूर्तियां स्थापित की गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं।

नोट: ऊपर दी गई जानकारी को हिंदू पुराणों हिंदू ग्रंथों हिंदू कैलेंडर आदि से लिया गया है इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर हमारी वेबसाइट की कोई भी जिम्मेदारी नहीं बनती।

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