मां दुर्गा और महिषासुर की कहानी | Story of Maa Durga and Mahishasura
मां दुर्गा और महिषासुर की कहानी |
Maa Durga aur Mahishasur ki kahani
एक रंभ नाम का असुर था जोकि असुरों का राजा था। एक दिन रंभ को जंगल में घूमते समय एक मादा भैंस दिखाई दी इस मादा भैंस पर रंभ असुर मोहित हो गया और इन दोनों के मिलन के बाद महिषासुर का जन्म हुआ। महीस का अर्थ भैंस होता है इसीलिए असुर और भैंस के मिलन के कारण पैदा हुए महिषासुर को "महिषासुर" नाम दिया गया।
महिषासुर अपने पिता की तरह बहुत शक्तिशाली और बलवान था। महिषासुर भैंस की तरह काला था और वह अपने आप को दुनिया का सबसे शक्तिशाली असुर बनाना चाहता था। इसके लिए उसने कई वर्षों तक भगवान ब्रह्मा की तपस्या की। भगवान ब्रह्मा उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। तब महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा अमर होने का वरदान किसी को नहीं दिया जा सकता कहकर ब्रह्मा जी ने उसे कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।
तब महिषासुर ने वरदान मांगा कि "ना किसी देवता और ना दानव से उसकी मृत्यु हो" लेकिन वरदान मांगते समय अपने अहंकार के कारण उसने एक गलती कर दी उसने महिलाओं को कमजोर और तुच्छ समझा और अपनी मृत्यु के कारणों में महिलाओं को शामिल नहीं किया।
महिषासुर जो कि एक असुर था अपनी असुर प्रवृत्ति के कारण ब्रह्मा से वरदान मिलते ही सारी दुनिया में अत्याचार करने लगा उसकी बढ़ती हुई शक्ति को देखकर देवताओं के राजा इंद्र भी घबरा गए चारों और अधर्म फैलने लगा सभी देवता महिषासुर से डरने लगे। महिषासुर ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करके इंद्र की नगरी अमरावती पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को पराजित कर दिया महिषासुर से पराजित होने के बाद सभी देवता भगवान शिव और विष्णु से सहायता मांगने गए।
महिषासुर के बढ़ते हुए अत्याचार को देखकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मिलकर एक योजना बनाई तीनों ने मिलकर अपनी शक्तियों का उपयोग किया जिससे एक शक्तिपुंज का निर्माण हुआ उसमें मां दुर्गा का कात्यायनी रुप प्रकट हुआ। मां दुर्गा का यह रूप अत्यंत भयानक था जिसके 10 हाथ थे फिर भगवान शिव ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र और इसी तरह सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र और शस्त्र मां दुर्गा को दिए।
इसके बाद मां दुर्गा महिषासुर से युद्ध करने के लिए महिषासुर की सेना के सामने गई। महिषासुर की सारी सेना मां दुर्गा को देखकर डरी हुई और आश्चर्य में थी, महिषासुर के साथ असुरों की पूरी सेना थी और मां दुर्गा अकेली थी लेकिन इसके बाद भी मां दुर्गा ने महिषासुर को कड़ी टक्कर देते हुए उसकी सारी सेना को समाप्त कर दिया युद्ध के क्षेत्र में भयंकर मारकाट मच गई। यह युद्ध 9 दिनों तक चलता रहा मां दुर्गा बिना थके हुए लगातार असुरों का नाश करती रही धीरे-धीरे करके महिषासुर के सभी असुर साथी मारे गए और अंत में महिषासुर का युद्ध मां दुर्गा के साथ हुआ। मां दुर्गा ने अपने शक्तिशाली त्रिशूल से महिषासुर का सीना चीर दिया और उसका वध कर दिया।
इसके बाद सभी देवी देवताओं ने मां दुर्गा को धन्यवाद दिया और मां दुर्गा ने कहा कि जब-जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ेगा अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं इसी तरह अवतार लेकर अधर्म और पाप करने वालों का नाश करूंगी।
Note - ऊपर दी गई जानकारी मां दुर्गा और महिषासुर की कहानी को हिंदू शास्त्र, देवी कथाओ, दंत कथाओं और इंटरनेट से रिसर्च करके लिखा गया है इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर हमारी वेबसाइट जिम्मेदारी नहीं लेती।