जानिए गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है | Gudi padwa kyon manate hain

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जानिए गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है | Gudi padwa kyon manate hain

गुड़ी पड़वा हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है। गुड़ी पड़वा किसी एक कारण से नहीं मनाया जाता हिंदुओं में गुड़ी पड़वा मनाने के कई कारण हैं। गुड़ी पड़वा को भारत देश के अन्य राज्यों में दूसरे नामों से भी जाना जाता है जैसे कि संवत्सर पड्यो, युगादी, उगादी, चेटीचंड और नवरेह और गुड़ी पड़वा।

गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व क्या है  Gudi padwa kyon manate hain

गुड़ी पड़वा का मतलब

हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इसी दिन हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है गुड़ी पड़वा में गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका। गुड़ी पड़वा एक मराठी शब्द है जिसमें पड़वा मूल रूप से संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ होता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा। महाराष्ट्र के सबसे वीर योद्धा महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज थे जिन्होंने गुड़ी पड़वा को नए साल के रूप में मनाया था और विजय ध्वजा लहराई थी। इसी के बाद से इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाने लगा और इसे प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा।

गुड़ी पड़वा मनाने के कारण

1. गुड़ी पड़वा को अलग-अलग राज्यों में कई कारणों से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसे वर्ष का पहला दिन माना जाता है हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के पहले दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है इस दिन का महत्व भारत में फसल के उत्सव को भी दर्शाता है। इसका मतलब रवि की फसलों का खात्मा होता है और नई फसलों की शुरुआत होती है। गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्र का आरंभ होता है इसीलिए हिंदुओं में गुड़ी पड़वा का महत्व और बढ़ जाता है।

2. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसीलिए गुड़ी पड़वा वर्ष के प्रथम दिन के रूप में मनाया जाता है।

3. गुड़ी पड़वा के दिन ही चेटीचंड पर्व मनाया जाता है चेटीचंड दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें चेट्टी का अर्थ होता है चांद और चंद्रमा। चैत्र माह में जब पहली बार चंद्रमा के दर्शन होते हैं तब सिंध समुदाय के लोग चेटीचंड त्योहार को मनाते हैं।

4. एक और पौराणिक कथा के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान श्री राम ने बाली का वध करके बाली के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। इसी के बाद से वहां की प्रजा ने अपने-अपने घरों में विजय पताका ध्वज फहराया था और खुशियां मनाई थी। इसीलिए इस पर्व को महाराष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और महाराष्ट्र के घर के आंगन में गुड़ी फहराने की परंपरा है।

गुड़ी पड़वा में क्या बनाया जाता है

महाराष्ट्र में लोग गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली और मीठी रोटी बनाते हैं इस व्यंजन को बनाने में मुख्य रूप से गुड़ का प्रयोग किया जाता है इसमें नीम के फूलों और इमली और कच्चा आम भी मिलाया जाता है यह एक बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन होता है। गुड को जीवन में मिठास घोलने के लिए और नीम को जीवन से कड़वाहट समाप्त करने के लिए मिलाया जाता है।

गुड़ी पड़वा कैसे मनाया जाता है

गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घर के आगे एक गुड़ि या झंडा बनाते हैं इसके बाद गुड़ी को नीम की पत्तियों और आम की पत्तियों से बने तोरण से सजाते हैं इसमें एक बर्तन भी रखा जाता है और इसमें रेशम का कपड़ा लपेटा जाता है इसकी पूजा करते समय सूर्य देव की आराधना की जाती है।

गुड़ी पड़वा के दिन क्या नहीं करना चाहिए

गुड़ी पड़वा के दिन मांस मछली और शराब का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए और इस दिन ताश और जुए से भी दूर रहना चाहिए। गुड़ी पड़वा के दिन भगवान विष्णु की आराधना करके श्रद्धा पूर्वक गुड़ी पड़वा के पर्व को मनाना चाहिए।

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