ठोकर खा कर आगे बढ़ना सीखो | Thokar kha kar aage badhna sikho

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ठोकर खा कर आगे बढ़ना सीखो | Thokar kha kar aage badhna sikho

दोस्तों आज मैं आपके साथ सुप्रसिद्ध वक्ता ओशो का एक प्रसंग शेयर कर रहा हूं जो आपको ठोकर खाने के बाद भी आगे बढ़ने की सीख देगा अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगे तो इसे शेयर जरूर कीजिएगा।

ठोकर खा कर आगे बढ़ना सीखो | Thokar kha kar aage badhna sikho

मान लीजिए आप चाय का कप हाथ मे लिए खड़े हैं और कोई आपको धक्का दे देता है,तो क्या होता है ?आपके कप से चाय छलक जाती है। अगर आप से पूछा जाए कि आप के कप से चाय क्यों छलकी? तो आप का उत्तर होगा "क्योंकि अमुक (फलां) ने मुझे धक्का दिया" ये गलत उत्तर है।

सही उत्तर ये है कि आपके कप में चाय थी इस लिए छलकी। आप के कप से वही छलकेगा जो उसमें है। 

इसी तरह जब ज़िंदगी में हमें धक्के लगते हैं,लोगों के व्यवहार से,तो उस समय हमारी वास्तविकता ही छलकती है। आप का सच उस समय तक सामने नहीं आता, जब तक आपको धक्का न लगे, तो देखना ये है कि जब आप को धक्का लगा तो क्या छलका ?

आप क्या छलकना चाहते हैं, धैर्य, मौन, कृतज्ञता, स्वाभिमान, निश्चिंतता, मानवता, या क्रोध, कड़वाहट, पागलपन, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा इत्यादि निर्णय हमारे वश में है! बस सही को चुन लीजिए।

दोस्तों आपको यह प्रसंग कैसा लगा कमेंट में जरूर बताइएगा।

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