कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत| koua kose dhor na mare kahawat
कौओं के बारे में बहुत सी कहावतें प्रचलित हैं यह कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी 'कौवा कोसे ढोर न मरे' चलिए आज इस कहावत का पूरा अर्थ समझते हैं।
कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत-
कौआ के कोसे ढोर मरे तो,
रोज कोसे, रोज मारे, रोज खाए।
कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत अर्थ-
कोस - किसी के बारे में बुरा सोचना, किसी का बुरा होने की कामना करना।
ढोर - जानवर, पालतू पशु इत्यादि।
कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत भावार्थ-
इसका सीधा सा अर्थ है कि यदि बुरा सोचने वालों के कारण ही किसी का बुरा होने लगे तो सभी बैठे-बैठे लोगों का बुरा करते रहेंगे। यदि ऐसा होता तो कौआ को अपने खाने के लिए किसी मरे जानवर का इंतज़ार नहीं करना पढता। वह रोज किसी जानवर का बुरा सोचता (मरने की सोचता) जानवर मरते और कौआ को खाने को मिलता।
कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत | koua kose dhor na mare kahawat |
कौआ कोसे ढोर न मरे कहावत से शिक्षा-
इससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमारा बुरा हमेशा हमारे कर्मों से होता है, किसी के बुरा चाहने से हमारा बुरा नहीं होता। इसीलिए हमें कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए हम किसी के बारे में चाहे कितना भी बुरा सोचें, सोचने से कुछ नहीं होगा। हम अपना ही समय बर्बाद करेंगे जिस तरह कौवा अपना समय बर्बाद करता है उसी तरह हम भी दूसरे व्यक्ति को कोस कोस कर अपना ही समय बर्बाद करेंगे। इससे अच्छा यह है कि हम अपने काम में ध्यान दें और अपने काम को मन लगाकर करें दूसरों की बुराई करने और दूसरों की निंदा करने में अपना समय व्यर्थ ना करें। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपना ज्यादातर समय दूसरों की निंदा करने और दूसरों की बुराई करने में ही निकाल देते हैं ऐसे लोग कभी भी अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते। कौवा चाहे जितना भी कोस ले उसके कोसने से ढोर नहीं मरता।