जठराग्नि किसे कहते हैं | Jatharagni kya hai
हमारे पेट के आमाशय के अंदर का तापमान या गर्मी को ही जठराग्नि कहा जाता है। जठराग्नि मुख्य रुप से पेट और आंतों के बीच नाभि के पास रहती है, जठराग्नि अपनी गर्मी से जल्दी ही भोजन को पचा देती है। हम जो कुछ भी खाते हैं, उसे ये अग्नि छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें शरीर के अनुसार बना देती है। ताकि हमारा शरीर उस भोजन से मिलने वाले पोषक तत्व को आसानी से अवशोषित कर सके। हमारे द्वारा खाए हुए भोजन में सबसे पहला परिवर्तन जठराग्नि ही करती है। जैसे ही भोजन ग्रास नाली से होकर आमाशय में पहुंचता है जठराग्नि इस पर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती है। आमाशय में उपलब्ध जठराग्नि में उपलब्ध जठरीय रस की भोजन पर क्रिया द्वारा प्रोटीन अंततः पेप्टोन (peptone) में बदल जाते हैं। और पेट में ही अवशोषित हो जाते हैं।
जठराग्नि |
जठराग्नि का क्या अर्थ है
संस्कृत भाषा में आमाशय को जठर कहते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्यति के अनुसार हमारे आमाशय में हमारे द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किये जाने वाले पदार्थों को पचाने के लिए एक प्रकार की अग्नि होती है जिसे जठराग्नि कहा जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जठराग्नि ही हमारे भोजन को पचाती है इसीलिए कभी भी खाना खाने के तुरंत बाद ज्यादा मात्रा में पानी नहीं पीना चाहिए नहीं तो हमारे द्वारा खाया गया भोजन आसानी से नहीं पचेगा और भोजन पचने में दिक्कत होगी क्योंकि तुरंत पानी पीने से पेट के अंदर की अग्नि शांत हो जाती है जिससे हमें पेट में दर्द पेट में गैस आदि की समस्या हो सकती है।