पितृपक्ष की एक कड़वी सच्चाई | Pitru paksha
पितृ पक्ष या पितरपाख, 16 दिन की वह अवधि है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को स्मरण करते हैं और उनके लिये दान करते हैं। इसे देश मे अन्य नामों से भी जाना जाता है। इसी के बारे में कबीर दास जी के जीवन में एक सुंदर प्रसंग जुड़ा हुआ है जिसे हम आगे पढ़ने वाले हैं दोस्तों इस प्रसंग को जरूर पढ़ियेगा।
एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा कि आज श्राद का दिन है और पितरो के लिये खीर बनानी है, तो क्यों ना आप जाएं और पितरो की खीर के लिये दूध ले आएं, कबीर दास जी उस समय उम्र में काफी छोटे थे (लगभग 10 वर्ष), कबीर दूध का बरतन लेकर दूध लेने के लिए चल पडे।
आगे चलकर कबीर दास जी को एक मरी हुई गाय पड़ी मिली। कबीर ने आसपास से घास को उखाड कर, गाय के पास डाल दिया और दूध का बर्तन पास में रखकर वही बैठ गये।
काफी देर हो गयी, कबीर लौटे नहीं, तो गुरु रामानंद ने सोचा “पितरो को खाना खिलाने का समय हो गया है, और पता नहीं क्यों कबीर अभी तक नही आया” तो रामानंद जी खुद चल पडे दूध लेने, वे चले जा रहे थे तो आगे देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रख के बैठे है।
गुरु रामानंद बोले: “अरे कबीर तू दूध लेने नही गया?”
कबीर बोले: स्वामीजी, ये गाय पहले घास खायेगी तभी तो दुध देगी।
रामानंद बोले: अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खायेगी?
कबीर बोले: स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है… और जब आज मरी गाय घास नही खा सकती… तो आपके 100 साल पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खायेगे?
यह सुनते ही रामानन्दजी मौन हो गये, उन्हें अपनी भूल का ऐहसास हुआ!
“जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाया,
मुठ्ठीभर चावल ले के, कौवे को बाप बनाया।
“यह दुनिया कितनी बावरी हैं, जो पत्थर पूजे जाय,
घर की चकिया कोई न पूजे, जिसका पीसा खाय”
उम्मीद है आपको कबीर दास जी के जीवन से जुड़े इस प्रसंग को पढ़ने के बाद कुछ सीखने को जरूर मिला होगा, दोस्तों आपने जो भी शिक्षा ली है उसे अपने जीवन में उतारकर समझने की कोशिश जरूर कीजिएगा।