महाशिवरात्रि की कहानी और इसका महत्व ! Mahashivratri ki kahani
महाशिवरात्रि का पर्व पूरे भारत हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस दिन भारत में भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है।
हिन्दू कलेंडर के अनुसार माघ महीने की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के तोर पर मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार जिस रात भगवान शिव और पार्वती जी का मिलन हुआ, उसी रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
एक और मान्यता के अनुसार जब समुंद्र-मंथन से बहुत सारा विष निकला तो देवताओं के कहने पर उसे भगवान शिव शंकर ने दुनिया को बचाने के लिए इसी दिन अपने कंठ में लिया था। तब से हर वर्ष माघ महीने की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
दोस्तों भगवान शिव-शंकर के बारे में आपने बहुत सी कहानियां सुनी होंगी लेकिन क्या आपने कभी भगवान शंकर से कुछ सीखने की कोशिश की? दोस्तों आज मैं आपकों शिवरात्रि के अवसर पर बताता हूँ, कि कैसे आप भगवान शंकर के गुणों को अपना कर अपना जीवन सफ़ल बना सकते है नीचे मैं आपको भगवान शंकर के कुछ गुणों के बारे बता रहा हूँ जिन्हें अपना कर आप जीवन में सफलता पा सकते है:-
- शांत रहना-दोस्तों आपने सुना ही होगा कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं होता, और आपने ये भी सुना होगा कि भगवान शिव हमेशा ध्यान मुद्रा में रहते हैं। ध्यान हमें अपने अंदर की शक्तियों को समझने में मदद करने के साथ हमारे तन और मन को शांत रखता है।
तीसरी आँख- हम सभी जानते है कि भगवान शंकर की तीसरी आँख भी है जिससे वे सारी दुनियां देख सकते है, और इसे वे समय आने पर ही खोलते है। दोस्तों हमारे पास तीसरी आँख तो नहीं और ना ही हम सारी दुनियाँ देख सकते है, लेकिन हम हमारे अंतर्मन में चल रहे विचारों को तो सुन सकते है और उन्हें समझ सकते है, और तीसरी आँख की तरह ही समय आने पर इसका उपयोग कर सकते है.
अर्धनारीश्वर- आप जानते होंगे भगवान शंकर का अर्धनारीश्वर अवतार भी था, इन्होंने अपनी पत्नी माता पार्वती को अर्धांगिनी का दर्जा दिया, जो के महिलाओं के प्रति सम्मान है, हमें भी अपनी माता, पत्नी और बहनों को बराबर से सम्मान देना चाहिए.
मस्तमौला- दोस्तों जीवन सुख और दुःख का ही मिला हुआ रूप है, सुख-दुख आते जाते रहते है, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी हमे अपना जीवन मस्तमौला हो कर जीना चाहिए.
तांडव- दोस्तों वैसे तो शिव जी हमेशा शांत और ध्यान मग्न रहते है, लेकिन जब क्रोध में में आते है तो तांडव ही कर देते है, क्योंकि कभी-कभी दुनियाँ शांत रहने वालों को कमजोर समझ लेती है.
विष का प्याला- दोस्तों जिस तरह भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था, उसी तरह दोस्तों, हम विष तो नहीं पी सकते पर हमारे अंदर पनप रहे विष के समान जलन, ईर्ष्या, भेदभाव कि भावना,अमीरी-ग़रीबी और जात-पात को अपने अंदर से बाहर निकाल सकते है.
तो दोस्तों इस तरह से हम भगवान शिव-शंकर के कुछ गुणों को अपना के अपने जीवन को सफल बना सकते है.
“दोस्तों भले ही भगवान शंकर की भक्ति ना कीजिए, लेकिन उनके गुणों को अपने जीवन मे जगह दीजिये, फिर देखिए क्या होता है”
जय शिवशंकर.. जय भोलेनाथ”
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