गणेश जी की कथा कहानी | Ganesh ji ki kahani
एक समय की बात है माता पार्वती ध्यान मगन होकर तपश्या कर रही थी। ध्यान इतना लंबा था कि कई महीने बीत गए। और वे जब ध्यान से उठी तो उनके शरीर मे काफी मैल मिट्टी आदि इक्कट्ठे हो गए थे। उन्होंने अपने शरीर को साफ करना शुरू किया और मिट्टी को एक जगह पर रखती गईं।
मिट्टी इतनी सारी थी कि उन्होंने उस मिट्टी से एक पुतला बनाया और देखते ही देखते वह पुतला जीवित हो उठा। उन्होंने उसे अपना पुत्र माना और आदेश दिया कि जब तक मे स्नान कर रही हूं किसी को गुफा के अंदर मत आने देना।
इसके बाद उनका पुत्र गुफा की पहरेदारी करने लगता है थोड़ी देर पहरेदारी करने के बाद वहां पर भगवान शिव शंकर आते हैं और उसे कहते हैं कि रास्ते से हट जाओ मुझे अंदर जाना है तब वह कहता है कि, नहीं मैं अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहा हूं मैं किसी को भी अंदर जाने नहीं दूंगा तब भगवान शिव शंकर ने कहा कि तुम मुझे मना कर रहे हो तुम जानते नहीं तुम किस से बात कर रहे हो तब माता पार्वती के पुत्र ने कहा कि आप चाहे जो भी हो मैं अपनी मां की आज्ञा का पालन करूंगा और भगवान शिव शंकर क्रोध में आकर पार्वती जी के पुत्र का गला काट देते हैं।
इतने में माता पार्वती बाहर आती है अपने पुत्र की हालत को देखकर वे बहुत क्रोधित हो जाती हैं और कहती हैं कि यदि मेरा पुत्र मुझे वापस नहीं मिला तो मैं सारी सृष्टि का नाश कर दूंगी तब भगवान शंकर और विष्णु दोनों मिलकर एक योजना बनाते हैं और एक हाथी के सिर को लाकर उसके पुत्र में लगा देते हैं और वह पुत्र जीवित हो जाता है उसको नाम दिया जाता है गणेश और कहा जाता है कि गणेश प्रथम पूज्य देवता होंगे जब भी कभी कहीं भी पूजा होगी तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा होगी।
दोस्तों हमारे प्यारे गणेश जी की कहानी कैसी लगी मुझे कमेंट में जरूर बताइएगा।